सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005
‘सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005’ क्या है ?
भारत सरकार द्वारा अधिनियमित ‘सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005’ भारत के नागरिकों के लिए है जो लोक प्राधिकरणों के नियंत्रण के अधीन रहनेवाली सूचनाओं तक उनकी पहुंच कराता है और जिससे लोक प्राधिकरणों के कार्य में पारदर्शिता एवं उत्तरदायित्व को बढ़ावा मिलता है।
सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 को अधिनियमित किए जाने की तारीख
सूचना का अधिकार अधिनियम पर राष्ट्रपति महोदय की अनुमति दिनांक 15 जून, 2005 को प्राप्त हुई। अधिनियम की धारा 4 की उप धारा (1) धारा 5 की उप-धारा (2) तथा धारा 12,13,15,16, 24, 27 एवं 28 तत्काल प्रवृत्त हो गई जबकि शेष अंश दिनांक 13 अक्तूबर, 2005 को प्रवृत्त हुए|
सूचना का अधिकार अधिनियम (उक्त अधिनियम) जम्मू और कश्मीर राज्य को छोड़कर पूरे भारत पर लागू है।
किस बात तक और कैसे पहुंच है?
सूचना का अधिकार में ऐसी सूचना तक पहुंच शामिल है जो किसी लोक प्राधिकरण द्वारा या उसके नियंत्रण के अधीन निर्धारित किया जाता है और इसमें किसी कार्य, दस्तावेज, अभिलेख की जांच करने, दस्तावेजों/अभिलेखों से नोट, उद्धरण या उनकी प्रमाणिक प्रतियां लेने तथा सामग्री के प्रमाणित नमूने लेने और इलेक्ट्रानिक रूप में रखी गई सूचना भी प्राप्त करने का अधिकार शामिल है। संसद के अधिनियम द्वारा गठित सरकारी क्षेत्र के सभी बैंक ‘लोक प्राधिकरण’ हैं।
सूचना कौन दे सकता है ?
उक्त अधिनियम में सूचना के लिए अनुरोध पर कार्रवाई करने हेतु एक मुख्य लोक सूचना अधिकारी की नियुक्ति का उपबंध है। सभी प्रशासनिक यूनिटों या कार्यालयों में भी लोक सूचना अधिकारियों को नामित किया जाना है।
सूचना प्राप्त करने के लिए कौन और कैसे अनुरोध कर सकता है ?
कोई भी नागरिक अंग्रेजी/हिंदी/क्षेत्र की राजभाषा में लिखित रूप में आवेदन प्रस्तुत करके या इलेक्ट्रानिक उपकरण के जरिए सूचना प्राप्त करने के लिए अनुरोध कर सकता है।
उक्त अनुरोध के साथ समुचित पावती के प्रति नकदी के रूप में या मांग ड्राफ्ट या बैंकर चेक द्वारा 10/- रु. का आवेदन शुल्क भी लगाया जाए।
यदि सूचना प्राप्त करने के लिए उपर्युक्त अनुरोध लिखित रूप में नहीं किया जा सकता है तो लोक सूचना अधिकारी उसे लिखित रूप में परिणत करने में सहायता प्रदान करेगा।
यदि कोई व्यक्ति गरीब रेखा से नीचे है तो उससे कोई शुल्क नहीं लिया जाएगा।
किस प्रकार की सूचना को प्रकटीकरण से छूट है ?
उक्त अधिनियम की धारा 8 एवं 9 में कतिपय श्रेणी की सूचना उपबंधित है जिन्हें नागरिकों को प्रकट किए जाने से छूट प्राप्त है।
- सूचना का अधिकार अधिनियम में सूचना के प्रकटीकरण से छूट
धारा 8 (1) :
इस अधिनियम में किसी बात के होते हुए भी किसी नागरिक को निम्नलिखित प्रदान किए जाने की बाध्यता नहीं होगी –
(क) कोई ऐसी सूचना जिसके प्रकटीकरण से भारत की प्रभुता और अखंडता, राज्य की सुरक्षा, रणनीति, वैज्ञानिक या आर्थिक हित, विदेश से संबंध पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता हो या अपराध-उद्दीपन होता हो;
(ख) कोई ऐसी सूचना जिसे प्रकाशित करने के लिए किसी न्यायालय या अधिकरण द्वारा अभिव्यक्तत: मना किया गया हो या जिसके प्रकटीकरण से न्यायालय की अवमानना होती हो;
(ग) कोई ऐसी सूचना जिसके प्रकटीकरण से संसद या राज्य विधायिका का विशेषाधिकार भंग होता हो;
वाणिज्यिक विश्वास, व्यापार संबंधी गुप्त बात या बौद्धिक संपदा सहित कोई ऐसी सूचना जिसका प्रकटीकरण तब तक किसी अन्य पक्ष की प्रतिस्पर्धात्मक स्थिति को हानि पहुंचाता हो जब तक सक्षम प्राधिकारी इस बात से संतुष्ट न हो कि व्यापक लोक हित में ऐसी सूचना का प्रकटीकरण न्यायसंगत है;
किसी व्यक्ति को उसकी वैश्वासिक हैसियत में तब तक उपलब्ध सूचना जब तक सक्षम प्राधिकारी इस बात से संतुष्ट न हो कि व्यापक लोक हित में ऐसी सूचना का प्रकटीकरण न्यायसंगत है;
विदेशी सरकार से विश्वास में प्राप्त सूचना :
कोई ऐसी सूचना जिसका प्रकटीकरण किसी व्यक्ति के जीवन या भौतिक सुरक्षा को खतरे में डालता हो या जिससे विधि के प्रवर्तन या सुरक्षा प्रयोजनों हेतु विश्वास में दी गई सूचना या सहायता के स्रोत की पहचान होती हो;
(ज) कोई ऐसी सूचना जो अपराधियों के अन्वेषण या उनके पकड़े जाने या उनके विरुद्ध अभियोजना में अड़चन डालती हो;
(झ) मंत्रिपरिषद, सचिवों एवं अन्य अधिकारियों के विचार-विमर्श के रिकार्ड सहित मंत्रिमंडल के कागजात ;
परंतु यह कि मंत्रिमंडल के निर्णय, ऐसे निर्णय लिए जाने के कारण तथा ऐसे निर्णय लिए जाने की आधार-सामग्री को निर्णय लिए जाने और मामले के पूर्ण या समाप्त होने के बाद सार्वजनिक किया जाएगा;
परंतु यह और कि उन मामलों का प्रकटीकरण नहीं किया जाएगा जो इस धारा में विनिर्दिष्ट छूट के अधीन आते हैं;
(ञ) ऐसी सूचना जिसका संबंध तब तक व्यक्तिगत सूचना से है और जिसके प्रकटीकरण का संबंध तब तक किसी लोक क्रियाकलाप या हित से नहीं है या जो किसी व्यक्ति की एकांतता का तब तक अनधिकृत अतिक्रमण करता है जब तक, यथास्थिति, केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी या राज्य लोक सूचना अधिकारी या अपीली प्राधिकारी इस बात से संतुष्ट नहीं है कि व्यापक लोक हित में ऐसी सूचनाओं का प्रकटीकरण न्यायसंगत है।
आगे यह भी स्पष्ट किया जाता है कि उच्चततम न्यायालय द्वारा प्रख्यापित निर्णय की शर्तों के अनुसार सरकारी क्षेत्र के बैंक अपने ग्राहकों के क्रियाकलाप के बारे में सूचना प्रकटीकरण करने से इस आधार पर मना कर सकते हैं कि सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 की धारा 8 (1) के अनुसरण में ऐसा प्रकटीकरण ग्राहकों की एकांतता का अनधिकृत अतिक्रमण होगा।
परंतु यह कि जिस सूचना को संसद या किसी राज्य विधायिका को प्रदान किए जाने से मना नहीं किया जा सकता है उसे किसी व्यक्ति को भी प्रदान किए जाने से मना नहीं किया जाएगा।
अनुरोध के निपटान की समय-सीमा क्या है ?
किसी सूचना के लिए अनुरोध के निपटान की समय-सीमा ऐसे अनुरोध की प्राप्ति की तारीख से 30 दिन के भीतर है।
लोक प्राधिकरणों की बाध्यताएं क्या हैं ?
प्रत्येक लोक प्राधिकरण उक्त अधिनियम में यथानिर्दिष्ट अपने सभी रिकार्ड को बनाए रखेगा और उक्त अधिनिमय में यथाउल्लिखित निम्नलिखित को प्रकाशित करेगा : अपने संगठन के ब्योरे, कृत्य एवं कर्तव्य, अपने अधिकारियों एवं कर्मचारियों की शक्तियां एवं कर्तव्य, पर्यवेक्षण एवं उत्तरदायित्व की सरणी सहित निर्णय लेने की प्रक्रिया, अपने कृत्य के निर्वहन के लिए मानदंड, नियम, विनियम, अनुदेश मैनुअल एवं अपने कर्मचारियों द्वारा प्रयोग किए जाने वाले रिकार्ड, धारित दस्तावेजों की श्रेणी का विवरण, नीति निर्माण एवं उसके कार्यान्वयन के संबंध में जनता से परामर्श हेतु विद्यमान व्यवस्था, गठित समितियों और क्या उनकी बैठकों में जनता का प्रवेश है, या ऐसी बैठकों के कार्यवृत्त तक जनता की पहुंच है, अपने अधिकारियो एवं कर्मचारियों की निर्देशिका, अधिकारियों एवं कर्मचारियों का मासिक पारिश्रमिक एवं क्षतिपूर्ति की प्रणाली, आबंटित बजट, योजना व्यय एवं संवितरण, उपदान योजना के ब्योरे, रियायतों के ब्योरे, अनुज्ञापत्र या प्राधिकार, इलेक्ट्रानिक रूप में उपलब्ध सूचना के ब्योरे सूचना प्राप्त करने हेतु सुविधाएं, लोक सूचना अधिकारियों के ब्योरे।
अन्य बाध्यताएं :
धार 4(1) ( ग) :
जनता को प्रभावित करनेवाली महत्वपूर्ण नीति बनाते समय या निर्णय की घोषणा करते समय सभी सुसंगत तथ्यों को प्रकाशित करना।धारा 4(1) ( घ) :
प्रभावित व्यक्तियों को अपने प्रशासनिक या न्यायिककल्प निर्णयों का कारण बताना।धारा 11 :
तृतीय पक्षकार की सूचना: सूचना अधिकारी किसी तृतीय पक्षकार द्वारा दी गई एवं गोपनीय समझी जानेवाली सूचना को प्रकट करने के आशय की सूचना, अनुरोध प्राप्ति से पांच दिन के भीतर तृतीय पक्षकार को देकर प्रकट करने के लिए सशक्त है।पृथक्करणीयता :
यदि मांगी गई सूचना में छूट-प्राप्त सूचना एवं प्राप्य सूचना शामिल है और दोनों भाग को अलग किया जा सकता है तो जो सूचना छूट-प्राप्त नहीं है यह सूचना दी जानी चाहिए।सूचना तक किसकी पहुंच नहीं हो सकती है :
यह अब मान्य तथ्य है कि अनुच्छेद 19 द्वारा प्रदत्त अधिकार ऐसे प्रकृत व्यक्तियों तक सीमित है जो नागरिक हैं तथा कोई निगम, चूंकि वह नागरिक नहीं है, वह उक्त अनुच्छेद में शामिल अधिकारों का दावा नहीं कर सकता है यद्यपि उसके शेयरधारक नागरिक हैं। चूंकि कोई कंपनी प्रकृत व्यक्ति और नागरिक नहीं है, अत: उसे अधिनियम के अधीन सूचना प्राप्त करने का अधिकार नहीं है।
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